फेडरल रिजर्व के फैसले का भारत पर असर…

अमेरिका फ़ेडरल रिज़र्व ने एक बार फिर फिर अपने ब्याज डरो में इज़ाफ़ा किया है,इसका सीधा असर ग्लोबल बाज़ारों पर भी देखा जाएगा, इस महीने में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फ़ेडरल रिज़र्व ने लगातर इस महीने में दूसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है, जिसका असर नकरात्मक सिर्फ अमेरिकी अर्थ्यव्यवस्था नहीं बल्कि और भी अन्य देशो की अर्थ्यव्यवस्ता पर भी देखने को मिलेगा।

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अमेरिका में महंगाई में पिछले 41 वर्षों में सबसे ज्याद बढ़ोतरी हुई है, अगर इसके पपिछले आंकड़ों की बात की जाए तो ये 9.1 फीसदी पर थी.इसी की तलबगारी में फ़ेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरों में एका एक तीन चौथाई फीसदी की बढ़ोतरी की है, ये ब्याज दरें साल 1994 के बाद ये सबसे ऊँचा स्तर देखा जा रहा है। इससे पिछली फेड मीटिंग में भी फ़ेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरों 0.75 फीसदी में इज़ाफ़ा कर दी थी।

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फ़ेडरल ओपन मार्किट कमिटी ने कहा की अमेरिका में महंगाई दरें काफी बड़ी हुई है , कोरोना जैसी महामारी , कहने पिने के सामान की ऊँची कीमते , ऊर्जा की कीमतें , इन सभी कीमतों का असर इन ब्याज दरों के रूप में देखा जा रहा है। वही व्यापक मूल्य दबाव सप्लाई और डिमांड के असंतुलन को दर्शाती है जिसे काबू में करने के लिए फ़ेडरल रिज़र्व ने ये ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने का फैसला किया है। फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पावेल ने कहा है कि अमेरिकी इकोनॉमी के लिए सबसे बड़ा जोखिम लगातार बढ़ती महंगाई दर होगी. हालांकि आर्थिक मंदी को लेकर फेड के अध्यक्ष ने इतनी चिंता नहीं जताई है.
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इस साल चार बढ़ी दरें

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने पिछली बार जून में और इस बार जुलाई में लगातार 0.75-0.75 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद सवा महीने के अंदर ही ब्याज दरों में 1.50 फीसदी का इजाफा कर दिया है. इसके अलावा इस साल की बात करें तो चौथी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला फेडरल रिजर्व ने किया है.

फेडरल रिजर्व के फैसले का भारत पर असर

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले के बाद भारत के ऊपर भी इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है. सबसे पहले तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की आगामी 3-5 अगस्त को होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट बढ़ने की आशंका है. इससे देश में कर्ज महंगे होंगे और नागरिकों के लिए ईएमआई बढ़ने की संभावना है. वहीं डॉलर के चढ़ने से रुपये के और नीचे जाने का डर बना हुआ है जो पहले ही 80 प्रति डॉलर के स्तर को छू चुका है. भारत के लिए और भी मोर्चों पर कठिनाई बढ़ने की आशंका है जैसे इंपोर्ट के खर्च और बढ़ सकते हैं.
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