सोचिये उस समाज कि रक्षा का क्या होगा, जहा समाज के रखवाले ही सुरक्षित न हो ? जब समाज में अराजक तत्व इस तरह प्रबल हो जायेंगे की उन्हें समाज के रक्षको का ही कोई डर नहीं होगा तो कहा से आएगा समाज में स्थायित्वपन और सुरक्षा का भाव ? अराजक मानसिकता से भरे समाज में कभी समावेशी और विकाशील सोच नहीं पनप सकती हैं. जिस देश के समाज में अराजक तत्व और कृत्य हावी हो जायेंगे… वो देश ओर समाज कभी विकाशील नहीं हो सकता हैं. कल मंगलवार दोपहर नुह जिले के हिस्से में आने वाले अरावली रेंज में खनन मफियायो ने dsp सुरेन्द्र सिंह के ऊपर डंपर चढ़ा कर उनकी जान ले ली. सुरेन्द्र सिंह का कसूर बस इतना था की उन्होंने समाज और राष्ट्रीय संसधानो के दोहन को रोकने का प्रयास किया था. लेकिन राष्ट्रीय संसधानो और समाज पर गिद्ध दृष्टिपात रखने वाले माफ़िया और अराजक तत्वों की क्रूर मानसिकता से वह अपने आप को बचा नहीं पाये और राष्ट्र ओर समाज की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान देश के लिए दे दिया. दिन में हरियाणा तो मंगलवार देर रात हरियाणा से 1266 किलोमीटर दुर एक और समाज के रक्षक को बेख़ौफ़ अपराधिक मानसिकता के लोगो ने मौत के घाट उतार दिया. अतिवादी लोगो ने झारखण्ड पुलिस में सेवायुक्त महिला दरोगा को अपना शिकार बनाया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया. महिला दरोगा का कसूर इतना ही था कि वो अपनी टीम के साथ बंदोबस्त में लगी हुई थी. ड्यूटी के दौरान उन्हें सुचना मिली की जानवरों से लदा एक पिकअप उनके क्षेत्र से गुजरेगा एक कार की चेकिंग करने के बाद जैसे ही वो पिकअप की और बढ़ी राक्षसी सोच रखने वाले अपराधी उनको कुचलते हुए वहा से फरार हो गए. हालाँकि दोनों ही मसलो में गिरफ़्तारी हुई हैं. वहा के सरकारों की तरफ से शहीद पुलिस वालो के परिवार को सहायता का भी आश्वासन दिया गया हैं. लेकिन क्या सरकारी सहायता जाने वाले की कमी कभी पूरी नहीं कर सकता हैं ? कल शाम को इस से जुडी एक और घटना हुई कल देश के गृहमंत्री अमित शाह ने पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों की समीक्षा बैठक की और उन्होंने कहा की पुलिस वालो के मन में देशभक्ति, अनुशासन एवं संवेदनशीलता का भाव जागृत होना चाहिए. गृहमंत्री ने कहा कि पुलिस प्रशिक्षण में बेसिक पुलिसिंग, आधुनिक तकनीक का उपयोग और ज्ञान आज के समय की मांग हैं. लेकिन इस बात पर चर्चा कब होगी की जब समाज के रक्षक के ही जान पर बन आएगी तो क्या वो डर और खौफ में समाज की रक्षा कर पायेगा ? क्या डर के साए में एक पुलिस वाला संवेदनशीलता रह पायेगा ? जब तक अराजक तत्वों को समाज के रसूखदार लोगो की क्षय मिलती रहेगी क्या तब तक पुलिस के लोग अपनी देशभक्ति की जिम्मेवारी शत प्रतिशत ईमानदारी से निभा पाएंगे ? जब अपनी ही जान का डर होगा तो अनुसाशन कहा से आएगा ? क्या जिस आधुनिक उपकरण, ज्ञान और रिफार्म की बात बड़ी बैठकों में होती आ रही उसमे से कितनी ही बात आज तक जमीनी स्तर पर प्रभावी हुई हैं ? आज इन्ही तमाम बिंदु को रेखांकित करने का प्रयास करेंगे कि आखिर समाज के रक्षक=के इतने बक्ष्क किस कारण पैदा हो रहे हैं ?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार एक वर्ष में 740 पुलिस जवानो ने देश के लिए अपनी कुर्बानी दे दी. 740 में से 489 जवान देश केवल 6 राज्यों से थे. जिसमे मुख्य 6 राज्य महाराष्ट्र, पंजाब , उत्तरप्रदेश , राजस्थान , तमिलनाडु और आन्ध्र-प्रदेश रहे. 740 में से 598 पुलिस के जवान आतंकी गतिविधियों में संलिप्त, अतिवादी विचारधारा के लोग और अपराधिक किस्म के लोगो ने इन देश के बहादुर पुलिस कर्मी को अपने गिद्ध विचारधारा और आपराधिक विचारधारा का शिकार बना लिया हैं. सोचिये ये देश का दुर्भाग्य ही हैं कि हमारे 598 बहादुर रक्षको को अपराधियो ने मानव सयोजित सड़क हादसे का शिकार बना लिया हैं. हम सभी अपने निजी जीवन में ये सोचते हैं की भगवान कभी अस्पताल, कचहरी और पुलिस थाने का चक्कर मत लगावना लेकिन अगर हम सभी समाज का ही हिस्सा हैं कई बार ऐसी विषम परिस्थिति बन जाती हैं कि न चाहते हुए भी हमें पुलिस थाने का चक्कर लगाना ही पड़ जाता हैं और वहा अगर हमसे ठीक बर्ताव नहीं होता तो हम पुलिस वालो और उनकी व्यवस्था को कोसते हुए बाहर निकलते है. कई बार आपने अपने आस पास ये भी आम नजारा देखा होगा की पुलिस वाले रेहड़ी पटरी या आम आदमी से ठीक बर्ताव नहीं करते तो हमारे मुह से अनायास ही निकल पड़ता हैं की कितना कठोर असंवेदनशील पुलिस वाला हैं! कई बार आपने देखा सुना या पढ़ा भी होगा की इस थाने में पीड़ित या पीड़िता कि शिकायत दर्ज नहीं की ! कभी आपने सोचा हैं की ऐसा क्यों होता हैं ? क्या पुलिस वालो के पास दिल नहीं हैं ? क्या उनका परिवार नहीं हैं ? क्या उनके भीतर ममता नहीं हैं ? क्या वो कठोर हृदय हैं या बचपन से होते हैं ? दर्शको ममता और मानवता पुलिस के भीतर भी हैं क्यूंकि वो भी एक इन्सान और इसी समाज के एक तत्व हैं. वो समाज में अनुशासन बनाने के लिए कठोर हो जाते हैं और जैसे ही समाज में कोई आपदा आ जाती हैं तो परिवार के मुखिया की तरह चिंतित और करुणामाय हो जाते हैं और निरंतर प्रयास में रहते हैं की किस तरह मेरा परिवार इस समस्या से बाहर आ सकता हैं. उनकी झुझलाहट का मुख्य कारण हैं काम का अनावश्यक अतिभार भी हैं. जिसकी वजह से कई बार वो अपने कर्तव्यो के शुद्ध निर्वहन के दौरान असंवेदनशील या उनका व्यवहार रुखा हो जाता हैं. इस समस्या को दुर करने के लिए हमें अलग अलग राज्यों की पुलिस संस्थाओ में रिक्त स्थान पर भर्ती करने की आवश्यकता हैं. जिससे हमारे रक्षक अपना कर्तव्य का निर्वहन बिना किसी अतिभार के शांत चित्त से कर सके. अगर हम एक रिपोर्ट पर नज़र डाले तो ………… सभी राज्यों को मिला दीजिये तो पुलिस विभाग में लगभग 24% रिक्तिया हैं यानि की जगह खाली हैं. सयुक्त राष्ट्र के मानको के अनुसार प्रति लाख आबादी पर लगभग 222 पुलिस के जवान होने चाहिए लेकिन भारत में औसतन प्रति लाख व्यक्ति पर 192 हैं. आप खुद ही विचार कीजिये की इतनी पुलिस कर्मी की कमी के साथ पुलिस अधिकारी कैसे तनाव मुक्त और संवेदनशील बने रह सकते हैं. पुलिस में जवानो और अधिकारियो की कमी कि वजह से ही ठीक तरह से न पीड़ित जनो की शिकायत दर्ज हो पाती हैं और न सभी मामलो में दोषी को सजा मिल पाती हैं. अगर बात आधुनिकता की करे तो इस मामले में भी पुलिस की स्थिति दयनीय बनी हुई हैं ………………….. अगर पुलिस महकमे के आधारभूत संरंचना की बात करे तो राज्य पुलिस के पास आधुनिक हथियारों की 70 से 75% तक की कमी हैं.
पुलिस एंड रिसर्च डेवलपमेंट ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य पुलिस के पास लगभग अपनी जरुरत से 30.5% तक कम गाड़िया उपस्थित हैं. रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ की जो वित्त प्रावधान पुलिस महकमे को आधुनिक बनाने के लिए किया जाता हैं आश्चर्य की बात ये हैं कि उसका भी उपयोग पूरा नहीं हो पाता हैं. पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो का आंकड़ा ये बताता है कि देश के सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में 51 थाने ऐसे हैं जहां ना तो टेलीफोन है और ना ही वायरलेस सेट। सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस पुलिस दूरसंचार नेटवर्क का उपयोग अपराधों की जांच और अपराध संबंधी आंकड़ों के आदान प्रदान के लिए होता है वो कई राज्यों में बेकार पड़ा है। क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम का गठन देश के सभी थानों को एक दूसरे से जोड़ने के इरादे से किया गया था। बिहार और राजस्थान अभी भी इस परियोजना को कार्यान्वयित नहीं कर पाये हैं। भारतीय पुलिस तंत्र अपनी वर्षों पुरानी नियुक्ति प्रक्रिया से भी ग्रस्त है। पुलिसकर्मियों की नियुक्ति की प्रक्रिया मध्ययुगीन है, खास तौर पर सिपाही से लेकर सब इंस्पेक्टर तक की। प्रशिक्षण के दौरान पूरा ध्यान प्रशिक्षु की शारीरिक शक्ति को बढ़ाने में दिया जाता है लेकिन फोरेंसिक ज्ञान, कानून, सायबर अपराध और वित्तीय धोखाधड़ी संबंधी विशेषज्ञता को या तो नजरअंदाज कर दिया जाता है या इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।……………………. देश के भीतर तमाम बुद्धिजीवी इस बात को तो कहते हैं तमाम बैठकों में की पुलिस में रिफार्म की आवश्यकता हैं लेकिन कमजोर राजनीतिक इक्छाशक्ति और नौकरशाही के अड़ियल बर्ताव की वजह से पुलिस रिफार्म वही के वही बैठकों की बातो में ही बने हुए हैं. आपको भारत ने पुलिस रिफार्म और उसके प्रति व्यवस्था के उदासीन बर्ताव की एक झलक भी दिखा देते हैं ……………………….. सरकार की ओर से अभी तक राष्ट्रीय पुलिस आयोग सहित छह समितियों का गठन हो चुका है। इन समितियों ने व्यापक पुलिस सुधार की सिफारिश की है। इनमें पुलिस प्रशिक्षण पर गोरे समिति (1971-73), पुलिस सुधार पर रिबेरो समिति (1998), पुलिस सुधार पर पद्मनाभैया समिति (2000), राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंत्री समूह (2000-01), और आपराधिक न्याय प्रणाली सुधार पर मलीमथ समिति (2001-03) शामिल है। इन समितियों की सिफारिशों के बावजूद अभी तक कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में प्रकाश सिंह मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों को विंदुवार सात निर्देश दिये। हांलाकि आज तक इन पर अमल नहीं हो पाया। पुलिस में बेहतर रिफार्म इसलिए भी नहीं हो पा रहे हैं. क्यूंकि सत्ताधिशो का दखल पुलिस महकमे में इतना हैं कि उन्हें डर हैं की अगर रिफार्म हुए तो उनका नियंत्रण पुलिस पर कम हो जाएगा. लेकिन पुलिस को आधुनिक संवेदनशील और जवाबदेह बनाने के लिए पुलिस विभाग में निचले स्तर से उपरी स्तर तक सुधार की आवश्यकता हैं. सुरक्षा संबंधी गंभीर आंतरिक चुनौतियां बरकरार हैं। हमारे देश में आतंकवाद, वामपंथी रूझान से प्रभावित उग्रवाद, धार्मिक कट्टरता और जातीय हिंसा के खतरे कायम हैं। ये चुनौतियां अपनी ओर से निरंतर सतर्कता की मांग करती हैं। इनसे सख्ती से निबटने की जरूरत है लेकिन संवेदनशीलता के साथ और अगर हमारे देश के जाबाज जवान इसी तरह संसधानी और आधुनिकता के भाव में अपनी जान गवाते रहेंगे तो आने वाली पीढ़ी की रुझान पुलिस सेवा की और उदासीनता भरा हो जाएगा ………….